Special Report: खुद को आइसोलेट न करें प्राइवेट अस्पताल

Special Report: खुद को आइसोलेट न करें प्राइवेट अस्पताल

                                                                       (सांकेतिक तस्वीर)

नरजिस हुसैन

पिछले कुछ वक्त से भारत में लगातार तेजी से बढ़ते कोरोना के मामलों के बीच सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की जिम्मेदारियों की बहस भी तेज हो गई है। कोरोना महामारी ने अब यह बात सब पर साफ कर दी है कि देश में स्वास्थ्य की सुविधाओं का ढांचा चरमराया हुआ है और यहां की ज्यादा आबादी आज भी इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों का रुख करती है और उनपर भरोसा भी करती है। इसे आप जनता की मजबूरी भी कह सकते हैं क्योंकि, इसके अलावा उनके पास कोई तीसरा रास्ता मौजूद नहीं है। आज देश भर के प्राइवेट अस्पतालों या स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले प्राइवेट सेक्टर के पास सरकारी सिस्टम से ज्यादा आधुनिक सुविधाएं हैं, मशीने और ऑक्सीजन हैं, आईसीयू, सीसीयू, वेंटिलेटर और ट्रेंड स्टाफ है।

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देश में प्राइवेट सेक्टर के पास दो-तिहाई पलंग वाले अस्पताल हैं और इस मुसीबत के वक्त इनके पास पूरे देश में 80 प्रतिशत वेंटिलेटर हैं जो कोविड-19 के महज 10 फीसद गंभीर मरीजों का भार उठा रहे हैं। करीब 2.4 लाख करोड़ रुपए का यह प्राइवेट सेक्टर लगातार तीन महीने के बाद भी कोरोना से लड़ाई के लिए सरकारी अस्पतालों, डॉक्टरों, नर्सों और पैरा मेडिकल स्टाफ का मुंह देख रहा है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कुछ सरकार की नीतियों में साफगोही की कमी के चलते देशभर में कई प्राइवेट अस्पतालों ने कोरोना के फैलाव के शुरूआत में ही अस्पताल बंद कर दिए थे। जिन्होंने नहीं भी किए थे उन्होंने कोरोना के मरीजों का इलाज करने से मना कर दिया था। और इसी के चलते इन अस्पतालों ने आम बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए भी अपने दरवाजे बंद कर लिए थे।

बिहार से महाराष्ट्र, राजस्थान से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली सबने लॉकडाउन की मजबूरी, अपने स्टाफ के इंफेक्शन का खतरा, अस्पताल के पास सुविधाओं की कमी जैसी वजहें बताकर कोरोना के इलाज से खुद को ही आइसोलेट करना शुरू कर दिया था। इन राज्यों में कोरोना और गैर-कोरोना के मरीजों का इलाज भी प्राइवेट अस्पताल नहीं कर रहे हैं। अगर ध्यान से देखें तो इन सभी राज्यों में देश की ज्यादातर आबादी सिमटी हुई है और इन सभी राज्यों में कोरोना के इलाज के लिए लोगों को सरकारी अस्पतालों में ही जाना पड़ रहा है जहां सीमित सुविधाएं और मशीनें है।

यह हाल तब है जब देश में कोरोना का तीन चरणों में इलाज किया जा रहा है। पहले चरण में हल्के लक्षणों वाले मरीजों को आसीएमआर या सरकार क्वारेटाइन में जाने को कहती है अब अगर किसी के पास घर पर यह करना मुमकिन न हो तो सरकार ने उनके लिए हॉस्टल, स्कूल, स्टेडियम और लॉज वगैरह में रखने का बंदोबस्त किया है। दूसरे और तीसरे चरण में ही दरअसल अस्पतालों की जरूरत मरीज को पड़ती है जहां ऑक्सीजन के साथ वेंटिलेटर और आईसीयू जरूरत पड़ने पर फौरन मरीज को दिया जा सके। अब आईसीएमआर का कहना है कि देशभर में कोरोना के करीब 80 फीसद मरीज ऐसे हैं जिनके लक्षण हल्के हैं या नहीं के बराबर हैं और इनको तो क्वारेंटाइन में ही ठीक किया जा सकता है और इनकों अस्पतालों की भी जरूरत नहीं होती। बावजूद इसके देशभर में फैली इस महामारी में सरकारी अस्पतालों का हाथ बटांने और अपनी जिम्मेदारी उठाने से प्राइवेट सेक्टर बच रहा है। इसी के चलते बाद में दिल्ली और महाराष्ट्र सरकारों ने अपने-अपने राज्यों के सभी प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम को सभी मरीजों का बराबर इलाज करने के आदेश भी जारी किए थे।

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अब यहां प्राइवेट अस्पतालों की भी अपनी वजहें हैं अस्पताल बंद करने को लेकर कुछ का कहना है कि इंफेक्शन के डर से अस्पताल मालिकों को अपने स्टाफ को होटल में रहने का कमरा, घर से या होटल से अस्पताल लाने-ले जाने के लिए गाड़ियां और पीपीई का खर्च मिलाकर करीब 10 फीसद और बढ़ जाता है जिसका बोझ फिलहाल कोई भी प्राइवेट अस्पताल नहीं उठाना चाहता क्योंकि ऑपरेशन के कैंसिलेशन और गैर-कोविड मरीजों के आने की तादाद में आई एकदम गिरावट की वजह से प्राइवेट सेक्टर की आमदनी भी एक झटके से कम हो गई है। ऐसे में वे किस तरह अपने स्टाफ को काम पर बुलाएं। फिर उनका सफाईकर्मी भी काम पर खुद ही नहीं आना चाहता और अगर कोविड का मरीज आता है तो उनके खुद के स्टाफ को पॉजिटिव होने का खतरा और आर्थिक बोझ कोई भी प्राइवेट अस्पताल इस दौर में उठाने को तैयार नहीं है।

 

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